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पाठ संख्या -08 (पांच महायज्ञ )
प्रश्न -1.चार प्रकार के कर्म कौन-कौन से हैं ? उनके नाम और स्वरुप भी बताएँ |
उत्तर-1 शास्त्रों में चार प्रकार के कर्म बताये गए हैं |
1. नित्यकर्म =प्रतिदिन किये जाने वाले कर्म को नित्य कर्म कहा जाता है |
2.नैमितिक कर्म = किसी निमित्त या कारण से किये जाने वाले कर्म को नैमित्तिक कर्म कहा जाता है | जैसे –होली, दिवाली ,उत्सव एवं जन्म दिन आदि के अवसर पर किये जाने वाले कर्म को नैमितिक कर्म कहा है |
3. काम्यकर्म = किसी कामना या उद्देश्य की पूर्ति से किये जाने वाले कर्म को काम्य कर्म कहा जाता है |जैसे पुत्रेष्टि वर्शेष्टि यज्ञ आदि |
4.निषिद्ध कर्म = यह कर्म अशुभ कर्म की श्रेणी में आता है | हमें निन्दित कर्म नहीं करने चाहिए जैसे – गाली देना, चोरी मक्कारी करना , देश के साथ धोखा करना , विश्वासघात एवं गौह्त्या जैसे काम नहीं करने चाहिए |
प्रश्न-2.पांच महायज्ञ कौन से हैं ? इनका सम्बन्ध किस प्रकार के कर्म से है ?
उत्तर –पांच महा यज्ञ निम्नलिखित हैं – ब्रह्मयज्ञ , देवयज्ञ , पितृयज्ञ अतिथि यज्ञ , और पांचवां बलिवैश्वदेवयज्ञ | वेद के अनुसार इन सबका सम्बन्ध हम सबके जीवन में नित्यकर्म के रूप में है अर्थात् इन पांच महा यज्ञों को हमें प्रतिदिन करना चाहिए |
प्रश्न-3 ब्रह्म यज्ञ से अभिप्राय है ? इस यज्ञ को कैसे किया जाता है ?
उत्तर- ब्रह्म यज्ञ का अर्थ है – संध्या प्रार्थना | ब्रह्म से तात्पर्य यहाँ सृष्टि के रचयिता अर्थात् परमपिता परमात्मा से है | इस यज्ञ के द्वारा हमें –
@ आत्मा -परमात्मा का चिन्तन करना चाहिए |
@ ध्यान मग्न होकर ईश्वर के ओ३म् नाम का जाप आदि करना चाहिए |
@ इस यज्ञ को प्रातःकाल सूर्योदय के समय , और सायंकाल सूर्यास्त के समय करना चाहिए | इस यज्ञ के करने से बहुत लाभ होता है |
प्रश्न- देव यज्ञ में अग्नि के कितने रूप हो जाते हैं ?
उत्तर- देव यज्ञ में अग्नि के तीन रूप हो जाते हैं | 1. एक रूप तो वह राख है जो जली हुई अग्नि के शान्त हो जाने के पश्चात् हवन कुण्ड में रह जाती है | 2. दूसरा रूप - इसकी सुगंध और उन वस्तुओं के गुण जो हवंन कुण्ड में डाली गईं |देव यज्ञ का यह रूप सूक्षम होकर सारे वायु मंडल में फ़ैल जाता है और अग्नि ,जल,वायु,आकाश ,वनस्पति ,चंद्रमा, सूर्य ,पृथ्वी ,नक्षत्र तक सभी देवताओँ को शक्ति मिलती है | अपनी अपनी आवश्यकता के गुण वे ग्रहण कर लेते है और हजार गुना ,लाख गुना करके संसार को वापस कर देते हैं | 3. तीसरा रूप – आहुति का तीसरा रूप इससे भी सूक्ष्म हो जाता है | यज्ञ का यह रूप यज्ञ करने वाले के हृदय में जाकर उसके सूक्ष्म शरीर से लिपट जाता है जो ( सूक्ष्म शरीर ) आत्मा के साथ लिपटा हुआ है और यह आत्मा जब स्थूल शरीर को छोडती है , तो सूक्ष्म शरीर भी आत्मा के साथ चला जाता है और इस सूक्ष्म शरीर से लिपट कर यह आहुतियाँ श्रद्धा और विश्वास बनकर आत्मा को सुंदर और सुख देने वाले लोकों में ले जातीं हैं |
प्रश्न-5 देव यज्ञ पर्यावरण से किस प्रकार सम्बंधित है ?
उत्तर-5 निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि- देव यज्ञ के करनें से पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है | वेद मन्त्रों के उचारण , अग्नि, और आहुतियों का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है|देव यज्ञ करने से वृष्टि ,वर्षा तथा जल की शुद्धि होकर वर्षा होती है और अन्न , फल आदि की वृद्धि होकर संसार को सुख और आरोग्य प्राप्त होता है |
प्रश्न-6 अभिवादनशील को किन चार वस्तुओं की प्राप्ति होती है ?
उत्तर-6 जो अभिवादनशील है और वृद्धों की नित्य सेवा करता है , उसके आयु , विद्या , यश और बल ये चार चीजें बढती है | महाभारत के यक्ष -युधिष्ठर संवाद में युधिष्ठर ने कहा है कि- “ वृद्धों की सेवा करने से मनुष्य आर्य बुद्धि वाला होता है “ |
अभिवादनं शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः | चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम् ||
प्रश्न-7 पितृ यज्ञ किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर-7 तीसरा महायज्ञ पितृ यज्ञ है |यह भी नित्यकर्म है | इसका अर्थ है माता-पिता , सास-ससुर , साधु-महात्मा , गुरुजनों एवं वृद्धजनों की सेवा करना | इस सेवा से हमें उनका आशीर्वाद मिलता है और आशीर्वाद से सुख एवं उन्नति की प्राप्ति होती है | मनुस्मृति में भी लिखा है की : अभिवादनं शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः | चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम् ||
प्रश्न-8 अतिथि यज्ञ और बलि वेश्वदेव यज्ञ की विधिओं का उल्लेख लिखें |
उत्तर- 8 चौथा महा यज्ञ कहा जाने वाला नित्यकर्म अतिथि यज्ञ है |इसका तात्पर्य है कि- कोई भी व्यक्ति या अन्य साधू,सन्त,महत्मा ,विद्वान बिना बुलाए , बिना सूचना दिए घर में आ जाए तो उस समय उसका स्वागत और सत्कार करना चाहिए ,उसे खाने-पीने को देना अतिथि यज्ञ कहा जाता है | यह यज्ञ हमारी संस्कृति का उज्ज्वलतम चिह्न है और आज भी देश के कई भागों में अतिथि यज्ञ की भावना विद्यमान है |
’’अतिथि यज्ञ के आदर्श –राजा रन्ति देव को समझा जाता है’’
बलिवैश्व देव यज्ञ :- अतिथि यज्ञ के पश्चात् पांचवां महा यज्ञ कहा जाने वाला बलिवैश्व देव यज्ञ है | यह यज्ञ भी नित्य कर्म के अंतर्गत आता है | इस यज्ञ में धरती पर रहनें वाले समस्त प्राणियों के कल्याण के लिए प्रयत्न करना और प्रभु से प्रार्थना करना , स्वयं भोजन करने से पूर्व यज्ञ की अग्नि में या रसोई की अग्नि में नमकीन वस्तुओं को छोड़कर मीठा मिले हुए अन्न की उन सब प्राणियों के लिए आहुति देना जो इस विशाल संसार में रहते हैं | चीटियों को चुग्गा पानी आदि देकर सुखी बनाने का प्रयत्न इसी यज्ञ के अंतर्गत आता है | इस प्रकार ये पञ्च महायज्ञ है जो हम सबको प्रतिदिन करने चाहिए |