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Hindi {Ch-1 to 10} Class 8

This Blog is Created By Aman kumar Em@il ID- Kumarboyaman5022@gmail.com By Facebook-Aman kumar

This is the syllabus of first term..

Ch-11 to 20 (Continued after 1st Term examination.

Em@il-kumarboyaman5022@gmail.com


(ch-10)

PAATH ME SE


(ch-9)

PAATH ME SE


(ch-8)

PAATH ME SE

(ch-7)

PAATH ME SE


(ch-6)

PAATH ME SE


(CH-5) Only for reading.... 


(CH-4)

PAATH ME SE


(Ch-3)

PAATH ME SE


(CH-2)

PAATH ME SE



(Ch-1)

PAATH ME SE

Hindi Sections For Class 8

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Some Hindi Contents(Ch-1 to ch-10)  [Only First Term]

D.S Ch-8 Class 8

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Ch 8 Do it youeself...

D.s Ch-8 Class 8

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पाठ संख्या -08 (पांच  महायज्ञ )
प्रश्न -1.चार प्रकार के कर्म कौन-कौन से हैं ? उनके नाम और स्वरुप भी बताएँ |
       उत्तर-1  शास्त्रों में चार प्रकार के कर्म बताये गए हैं |
1. नित्यकर्म =प्रतिदिन किये जाने वाले कर्म को नित्य कर्म कहा जाता है |
2.नैमितिक कर्म = किसी निमित्त या कारण से किये जाने वाले कर्म को नैमित्तिक कर्म कहा जाता है | जैसे –होली, दिवाली ,उत्सव एवं जन्म दिन आदि के अवसर पर किये जाने वाले कर्म  को नैमितिक कर्म कहा है |
 3. काम्यकर्म  = किसी कामना या उद्देश्य की पूर्ति से किये जाने वाले कर्म को काम्य कर्म कहा जाता है |जैसे पुत्रेष्टि वर्शेष्टि यज्ञ आदि |
4.निषिद्ध कर्म = यह कर्म अशुभ कर्म की श्रेणी में आता है | हमें निन्दित कर्म नहीं करने चाहिए जैसे – गाली देना, चोरी मक्कारी करना , देश के साथ धोखा करना ,  विश्वासघात एवं गौह्त्या जैसे  काम नहीं करने चाहिए |
प्रश्न-2.पांच महायज्ञ कौन से हैं ? इनका सम्बन्ध किस प्रकार के कर्म से है ?
उत्तर –पांच महा यज्ञ निम्नलिखित हैं – ब्रह्मयज्ञ ,  देवयज्ञ , पितृयज्ञ  अतिथि यज्ञ , और पांचवां बलिवैश्वदेवयज्ञ  | वेद के अनुसार इन सबका सम्बन्ध हम सबके जीवन में नित्यकर्म के रूप में  है अर्थात् इन पांच महा यज्ञों को हमें प्रतिदिन करना चाहिए |
प्रश्न-3 ब्रह्म यज्ञ से अभिप्राय है ?  इस यज्ञ को कैसे किया जाता है  ?
उत्तर- ब्रह्म यज्ञ का अर्थ है – संध्या प्रार्थना | ब्रह्म से तात्पर्य यहाँ सृष्टि के  रचयिता अर्थात् परमपिता परमात्मा से है | इस यज्ञ के द्वारा हमें –
  आत्मा -परमात्मा का चिन्तन करना चाहिए |
 @  ध्यान मग्न होकर ईश्वर के ओ३म् नाम का जाप आदि करना चाहिए | 
@ इस यज्ञ को प्रातःकाल  सूर्योदय के समय , और सायंकाल सूर्यास्त के समय करना चाहिए  | इस यज्ञ के करने से बहुत लाभ होता है |
प्रश्न- देव यज्ञ में अग्नि के कितने रूप हो जाते हैं ?
उत्तर- देव यज्ञ में अग्नि के तीन रूप हो जाते हैं |   1. एक रूप  तो वह राख है जो जली हुई अग्नि के शान्त हो जाने के पश्चात् हवन कुण्ड में रह जाती है |   2. दूसरा रूप -  इसकी सुगंध और  उन वस्तुओं के गुण जो हवंन कुण्ड  में डाली  गईं |देव यज्ञ का यह रूप सूक्षम होकर सारे वायु मंडल में फ़ैल जाता है और अग्नि ,जल,वायु,आकाश ,वनस्पति ,चंद्रमा, सूर्य ,पृथ्वी ,नक्षत्र तक सभी देवताओँ को शक्ति मिलती है | अपनी अपनी आवश्यकता के गुण वे ग्रहण कर लेते है और हजार गुना ,लाख गुना करके संसार को वापस कर देते हैं |            3. तीसरा रूप – आहुति का तीसरा रूप इससे भी सूक्ष्म  हो जाता है | यज्ञ का यह रूप यज्ञ करने वाले के हृदय में जाकर उसके सूक्ष्म शरीर से लिपट जाता है  जो ( सूक्ष्म शरीर ) आत्मा के साथ लिपटा  हुआ है और यह आत्मा जब स्थूल शरीर को छोडती है , तो सूक्ष्म शरीर भी आत्मा के साथ  चला जाता है और इस सूक्ष्म शरीर से लिपट कर यह आहुतियाँ  श्रद्धा  और  विश्वास  बनकर आत्मा को सुंदर और सुख देने वाले लोकों में ले जातीं हैं  |
 प्रश्न-5  देव  यज्ञ पर्यावरण से किस प्रकार सम्बंधित है ?                                
उत्तर-5 निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि- देव यज्ञ के करनें से पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है | वेद मन्त्रों के उचारण , अग्नि, और आहुतियों का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है|देव यज्ञ करने से वृष्टि ,वर्षा तथा जल की शुद्धि होकर  वर्षा होती है और अन्न , फल आदि की वृद्धि होकर संसार को सुख और आरोग्य प्राप्त होता है |
प्रश्न-6 अभिवादनशील को किन चार वस्तुओं की प्राप्ति होती है ?       
उत्तर-6  जो अभिवादनशील है और वृद्धों की नित्य सेवा करता है , उसके आयु , विद्या , यश और बल ये चार चीजें बढती है | महाभारत के यक्ष -युधिष्ठर संवाद में युधिष्ठर ने कहा है कि-    “ वृद्धों की सेवा करने से मनुष्य आर्य बुद्धि वाला होता है  “ |
  अभिवादनं शीलस्य  नित्यं वृद्धोपसेविनः |  चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम् ||
प्रश्न-7 पितृ यज्ञ किस प्रकार किया जाता है ?     
उत्तर-7 तीसरा महायज्ञ पितृ यज्ञ है |यह भी नित्यकर्म है | इसका अर्थ है माता-पिता , सास-ससुर , साधु-महात्मा , गुरुजनों एवं वृद्धजनों की सेवा करना | इस सेवा से हमें उनका आशीर्वाद मिलता है और आशीर्वाद से सुख एवं उन्नति की प्राप्ति होती है | मनुस्मृति में भी लिखा है की :  अभिवादनं शीलस्य  नित्यं वृद्धोपसेविनः  | चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम् ||
प्रश्न-8 अतिथि यज्ञ और बलि वेश्वदेव यज्ञ की विधिओं का उल्लेख लिखें |
उत्तर- 8 चौथा महा यज्ञ कहा जाने वाला नित्यकर्म अतिथि यज्ञ है |इसका तात्पर्य है कि- कोई भी व्यक्ति या अन्य साधू,सन्त,महत्मा ,विद्वान  बिना बुलाए , बिना सूचना दिए        घर में आ जाए तो उस समय उसका स्वागत और सत्कार करना चाहिए ,उसे खाने-पीने को देना अतिथि यज्ञ कहा जाता है |  यह यज्ञ हमारी संस्कृति का उज्ज्वलतम चिह्न है और आज भी देश के कई भागों में अतिथि यज्ञ की भावना विद्यमान है |
       ’’अतिथि यज्ञ के आदर्श –राजा रन्ति  देव को समझा जाता है’’                     
बलिवैश्व देव यज्ञ :- अतिथि यज्ञ के पश्चात् पांचवां महा यज्ञ कहा जाने वाला बलिवैश्व देव यज्ञ है | यह  यज्ञ भी नित्य कर्म के अंतर्गत आता है | इस यज्ञ में धरती पर रहनें वाले समस्त प्राणियों के कल्याण के लिए प्रयत्न करना और प्रभु से प्रार्थना करना , स्वयं भोजन करने से पूर्व यज्ञ की अग्नि में  या रसोई की अग्नि में नमकीन वस्तुओं को छोड़कर मीठा मिले हुए अन्न की उन सब प्राणियों के लिए आहुति देना जो इस विशाल संसार में रहते हैं | चीटियों को चुग्गा पानी आदि देकर सुखी बनाने का प्रयत्न इसी यज्ञ के अंतर्गत आता है | इस प्रकार  ये पञ्च महायज्ञ है जो हम सबको प्रतिदिन करने चाहिए  |

D.S ch-10 Class 8

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पाठ – 10 ( योग की पहली सीडी –यम )
प्रश्न-1 योग के आठों अंगों के नाम लिखो |
उत्तर-1  योग के आठ अंग इस प्रकार हैं –
यम   नियम   आसन    प्राणायाम    प्रत्याहार     धारणा     ध्यान और  समाधि |
प्रश्न-2 यम कितने है ? प्रत्येक का नाम लिखकर अर्थ बताएं |
उत्तर-2 यम पांच है –“अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य अपरिग्रह यमा:”|
अहिंसा=   किसी प्राणी को मन वचन एवं कर्म से दु:ख न देना अहिंसा है |
सत्य=     सच्चाई का साथ देना,  प्रिय एवं  हितकारी बोलना सत्य कहाता है |
               “सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् मा ब्रुयात्सत्यमप्रियं “
अस्तेय= चोरी आदि न करना, जो परिश्रम से नहीं कमाया, जो अपना धन नहीं है उसे प्राप्त करने का प्रयास न करना आदि अस्तेयकहलाता है |
ब्रह्मचर्य= परमात्मा में ध्यान लगाना , अपनी इन्द्रियों को वश में रखना , शारीरिक मानसिक शक्तियों का बढ़ाना अथवा संचय करना ब्रह्मचर्य कहलाता है |हमें ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए |
अपरिग्रह= आवश्यकता से अधिक धन को जमा न करना आदि अपरिग्रह कहलाता है |यह दु:खदायी होता है अत: इससे हमें बचना चाहिए | इस प्रकार ये पांच यम हैं इनका पालन करना सीखना चाहिए |
प्रश्न-3  अहिंसा का सम्बन्ध मनोवृत्ति से है , क्रिया से नहीं | उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें |
 उत्तर-3  अहिंसा का सम्बन्ध मनोवृत्ति से है , क्रिया से नहीं है |वास्तव में हिंसा का अर्थ केवल किसी को “मारना” भर नहीं है अपितु हिंसा मन में आये विचारों से भी हो सकती है |इसे एक उदाहरण द्वारा भी समझा जा  सकता है –एक कुशल डाक्टर अपने रोगी बचाने के लिए आपरेशन करता है इस दौरान रोगी को भयंकर पीड़ा होती है तो क्या यह हिंसा है ? नहीं | क्योंकि  –यह सारा काम मन, वचन ,कर्म, एवं सात्विक वृत्ति से हो रहा होता है अतः यह हिंसा नहीं  कही जा सकती | इसी प्रकार एक सैनिक युद्ध के मैदान में देश की रक्षा के किये दुश्मन को मारता है तो क्या यह हिंसा है  ? नहीं |  क्योंकि यह अपने  कर्तव्य का पालन कर रहा होता है |
प्रश्न-4 अस्तेय तथा अपरिग्रह का क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर- स्तेय  चोरी को कहते है और अस्तेय चोरी न करने को कहते हैं | संसार में बहुत प्रकार  की चोरियां होती हैं | दुसरे की वस्तु को बिना मूल्य दिए लेना  ही चोरी नहीं अपितु घटिया माल को बढ़िया बताकर बेचना और कम तोलना भी चोरी है |अपने काम को लगन से  न  करना  भी चोरी  है |
अन्याय से किसी की संपत्ति ,राज्य,धन या अधिकार को छीन लेना भी चोरी है | मजदूरों को कम मजदूरी देना , अनाज जमा करके मंहगा बेचना ,गरीबों का रक्त चूसना आदि भी चोरी के ही रूप हैं | ये व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों ही तरह से हानिकारक है |और
अपरिग्रह= का अर्थ है गलत संग्रह न करना | वास्तव में यदि हम सब सु:ख और  शान्ति चाहते हैं तो हमें आवश्यकताओं से अधिक वस्तुओं का  संग्रह नहीं करना चाहिए | हमारी आवश्यकताएं जितनी बढेंगी उतनी ही समाज में अशांति फैलेगी | क्योंकि अनावश्यक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उल्टा-सीधा कमाना पड़ेगा जो कि-पाप का कारण भी हो सकता है, दूसरों के साथ कई  बार दुर्व्यवहार भी करना पड़ सकता है | अत: हमें अस्तेय और अपरिग्रह का जीवन में ध्यान रखना  चाहिए | इससे जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान हो पायेगा और व्यक्तिगत एवं सामाजिक उन्नति भी हो पायेगी |
प्रश्न-5 ब्रहमचर्य का क्या महत्व है ?
उत्तर-5 आँख ,कान,नाक,जिह्वा ,त्वचा,मन बुद्धि आदि इन्द्रियों पर नियंत्रण करना ब्रह्मचर्य कहलाता है | वास्तव में ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला व्यक्ति अपनी शारीरिक आत्मिक मानसिक उन्नति को प्राप्त करनें में समर्थ होता है | ऐसा व्यक्ति समाज को अपनी सोच और व्यवहार के अनुकूल बना लेता है | समाज में संयम बना रहता है | विद्यार्थी जीवन में ब्रह्मचर्य का बहुत महत्त्व है क्योंकि ब्रह्मचर्य का पालन करने से  शरीर सुन्दर और स्वस्थ बनता है | बुद्धि तीव्र एवं प्रखर बनती है | आत्मा बलवान होती है | अत: ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए |

D.S. Ch-6 Class 8

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पाठ संख्या  6  ( संस्कॄत भाषा  )
प्रश्न-1 संस्कृत साहित्य किस भाषा में लिखा गया है ?
उत्तर-1 हमारा प्राचीनतम साहित्य जिस भाषा में लिखा गया है उसे  संस्कृतभाषा , देववाणी या सुर भारती के नाम से जाना जाता है।  ( page no.19  पर 1st line se)
प्रश्न-2 संसार की समस्त परिष्कृत भाषाओँ में कौनसी  भाषा परिष्कृत है ?
उत्तर-2 संसार भर की समस्त  परिष्कृत भाषाओं में संस्कृत भाषा ही प्राचीनतम है | संस्कृत लिखने और बोलने वालों नें संस्कृति एवं सभ्यता का निर्माण किया है | भारत की अन्य अनेक भाषाएँ संस्कृत से ही निकली हैं |   (page no.19  पर 1st para se )
प्रश्न-3 संस्कृत का मौलिक अर्थ क्या है ?                          
उत्तर-3   संस्कृत भाषा का मौलिक अर्थ = संस्कार की गई भाषा |संस्कृत भाषा का पहला प्रयोग वाल्मीकीय रामायण में देखने को मिलता है | जब भाषा का सर्व साधारण में प्रयोग कम होने लगा तब पालि एवं प्राकृत भाषाएँ बोलचाल की भाषाएँ बन गईं | तब  विद्वान् लोंगों नें प्राकृत भाषा से भेद दिखलाने की दृष्टि से संस्कृत नाम दे दिया |  ( page 19 पर 2nd para से full para)
प्रश्न-4 संस्कृत भाषा और भारतवासियों का माता और पुत्र का सम्बन्ध किस प्रकार का है ?
 उत्तर-4 संस्कृत और भारतवासियों का सम्बब्ध माता –पुत्र का है | संस्कृत सब भाषाओं से प्राचीन है |अत एव संस्कृत सब भाषाओं की जननी है |इसके सामान मृदुलता,मधुरता , व्यापकता और किसी भाषा में नहीं है |अतः हम सबको संस्कृत का अध्ययन अवश्य करना चाहिए | अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए भी संस्कृत को पढना चाहिए |  (pg.19 पर 3rd para )
प्रश्न-5 संस्कृत साहित्य के किन्ही  दो ग्रन्थ और लेखकों के नाम लिखिए ?
कालिदास लिखित
वेदव्यास लिखित
भर्तृहरि लिखित
कौटिल्य लिखित
मेघदूत
गीता एवं महाभारत
नीतिशास्त्र
अर्थशास्त्र
प्रश्न संख्या -6 (उत्तर सहित ) अर्थ शास्त्र के लेखक कौटिल्य जी हैं |
प्रश्न संख्या -7 गुरु गोबिंद सिंह जी ने संस्कृत के लिए क्या किया |
उत्तर-7  गुरु गोबिंद सिंह जी संस्कृत के बहुत बड़े भक्त थे | इन्होनें अपने शिष्यों को संस्कृत पढने काशी भेजा था | इनके संस्कृत प्रेम के कारण ही सिख रियासत में निःशुल्क पाठशालाएं चलती थीं |   (page 20 पर 3 rd para full )
प्रश्न संख्या -8 हमें संस्कृत भाषा का अध्ययन क्यों करना चाहिए ?
उत्तर-संख्या -8  हमें संस्कृत भाषा का अध्ययन अवश्य  करना चाहिए क्योंकि-
 1. संस्कृत भाषा= नियमों में चलने के कारण सीखने में किसी दूसरी भाषा की अपेक्षा अधिक सरल है |  2. इसके जैसी=सरलता, मधुरता,सरसता एवं भावों के आदानप्रदान की क्षमता अन्य किसी भाषा में नहीं दिखाई देती | 3. वैदिक साहित्य =और धार्मिक ग्रन्थ आदि भी इसी भाषा में लिखे गए हैं | 4. संस्कृत लिखने= और बोलने वालों नें संस्कृति एवं सभ्यता का निर्माण किया है | 5. भारत की अन्य= अनेक भाषाएँ आदि भी संस्कृत से ही निकली हैं | अत:  हम सभी को संस्कृत अवश्य पढनी चाहिए |
प्रश्न संख्या -9  संस्कृत किनकी भाषा है ?
उत्तर-9 संस्कृत केवल हिन्दुओं की भाषा है या हिन्दू साहित्य है ऐसा कहना गलत है | संस्कृत मानव मात्र की भाषा है और संस्कृत को पढने का मानव मात्र को अधिकार है | इस भाषा के समान मृदुलता मधुरता और व्यापकता किसी भाषा में नहीं है | संस्कृत में ज्ञान-विज्ञान एवं अध्यात्म विद्या का विशेष उल्लेख मिलता है | (page 21 पर last para )
प्रश्न-संख्या -10 क्या संस्कृत विश्व भाषा बन सकती है |
 उत्तर-संख्या -10  हाँ | संस्कृत विश्व भाषा बन सकती है | आज संसार के विद्वान मानने लगे हैं कि- कम्प्युटर के लिए सबसे सरल और उपयुक्त भाषा संस्कृत  है | यदि ऐसा हो जाए तो आज भी  संस्कृत  विश्वभाषा बन सकती है |

D.s Ch-9 class-8

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 पाठ- 9  (डी.ए.वी.गान)
प्रश्न-1 गीत के प्रथम पद्य  में डीएवी के लिए  किन-किन विशेषताओं का प्रयोग किया गया है ?
उत्तर- गीत के प्रथम पद्य  में डीएवी के लिए अविरल, निर्मल, सलिल, सदय, और ज्ञानप्रदायिनी, ज्योतिर्मय जैसी विशेषताओं का प्रयोग किया गया है ?
प्रश्न-2 गायक चारों दिशाओं में किस उद् घोष  की कामना करता है ?
उत्तर-2 गायक चारों  दिशाओं में डीएवी रुपी जयघोष के उद् घोष  की कामना करता है |
प्रश्न-3  इस गीत में डी,ए,वी की धारा  को परम पुनीता क्यों कहा गया है ?
उत्तर-3 इस गीतमें डीएवी की धारा को परमपुनीता इसलिए कहा
    गया है  क्योंकि इस धारा को पवित्र वेदज्ञान से बनाया गया है |
     “वेदप्रणीता परमपुनीता यह धारा अक्षय डीएवी की जय जय जय “
प्रश्न-4 डीएवी के साथ दयानन्द जी और हंसराजजी का क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-4 डीएवी के साथ दयानन्दजी का प्रेम की भक्ति का सम्बन्ध बताया गया है और हंसराज जी का त्याग की शक्ति का सम्बन्ध बताया गया है |
              दयानन्द से प्रेमभक्ति ले, हंसराज से त्यागशक्ति  ले |
                धर्मभक्ति का राष्ट्रशक्ति का हो दिनमान उदय | 
प्रश्न-5  गायक कैसे दिनमान का उदय चाहता है ?
उत्तर-5  गायक यहाँ पर डीएवी के रूप में एक प्रखर, तेजस्वी, ओजस्वी  एवं गतिमान, प्रकाशवान, ज्ञानवान   दिनमान = का उदय चाहता है |धर्म एवं राष्ट्र की उन्नति रुपी सूर्योदय करना चाहता है, अर्थात् सबका विकास चाहता है, सबकी उन्नति चाहता है |
नोट:- दिनमान से तात्पर्य यहाँ सूर्य से है |
प्रश्न-6 ( उत्तरसहित )  इस गीतिका को सस्वर कंठस्थ करें अर्थात् याद कीजिए |   

D.S ch-7 class 8

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पाठ संख्या -7 ( राष्ट्र भाषा हिन्दी )
प्रश्न संख्या -1 राजर्षि टन्डन अंग्रेजी को 15 वर्ष की छूट दिये जाने के पक्ष में नहीं थे |
उत्तर-1 उन दिनों कांग्रेस पर हिन्दी के विद्वान् श्री राजर्षि पुरषोत्तम दास टंडन जी की पकड़ पंडित जवाहरलाल नेहरूजी से अधिक थी | नेहरू जी 10 वर्ष तक अंग्रेजी बनी रहने का हठ करने लगे किन्तु टन्डन जी ऐसा करने को बिलकुल राजी नहीं थे | ऐसे में सेठ गोबिन्द दास एवं  पंडित बाल कृष्ण शर्मा नवीन  ने अनुनय –विनय करके , नेहरूजी  के पक्ष में टन्डन जी को राजी कर लिया और नेहरूजी द्वारा  हिंदी को 15 वर्ष की छूट दे दी  गई  किन्तु हुआ वही  जिसकी राजर्षि टंडन जी को  आशंका थी | ये 15 वर्ष पूरे होते उससे पहले ही टन्डन जी स्वर्ग वासी हो गए और फिर से हिंदी की अवहेलना करके अंग्रेजी को प्रचारित प्रसारित किया गया जो की हिन्दी के लिए पूर्णतया दुर्भाग्य था | यही कारण है कि- जो स्थान आज हिन्दी को प्राप्त है वह बहुत चिन्ता जनक है |
प्रश्न संख्या -2 आज देश में हिन्दी को जो स्थान प्राप्त है ? समीक्षा कीजिए
उत्तर-2  किसी राष्ट्र के समस्त देशवासियों में सच्चा प्रेम ,संगठन और एकता की भावना भरने के लिए एक राष्ट्र भाषा का होना आवश्यक है ,इस बात से कोई  बुद्धिमान व्यक्ति इनकार  नही कर सकता | हांलाकि आज कहने को तो हिन्दी  भारत की राष्ट्र भाषा है किन्तु उसे वह अधिकार नहीं मिल पा रहा है जिसकी आधिकारिणी है |  वास्तव में हिन्दी भारतीयों की भावात्मक अभिव्यक्ति का एकमात्र साधन है | इसके अभाव में भारतीयता की अभिव्यक्ति हो ही नही सकती | यह भारत की आत्मा है |
प्रश्न संख्या -3  गुरु गोबिन्द सिंह जी ने हिन्दी के लिए क्या किया ?
उत्तर-3 संत सिपाही दशमेश गुरू गोबिंद सिंह जी सारे देश की स्वतन्त्रता एवं अखंडता का स्वप्न संजोये हुए थे |  वे इसी निमित्त शिवाजी के पुत्र शम्भा से मिलने दक्षिण भारत गए थे | गुरू जी ने खालसा पंथ में दीक्षित होने वाले अनुयायियों को जो जयघोष प्रदान किया वह भी सारे देश के विचार से हिन्दी में ही था और आज भी हिन्दी में ही बोला जाता है – “ वाहे  गुरू जी का खालसा वाहे गुरू जी की फतेह “ | गुरू जी का दशम ग्रन्थ (जफरनामा ) छोड़कर हिंदी में ही है |
प्रश्न संख्या -4  स्वामी दयानन्द जी से हिन्दी अपनाने का आग्रह किसने किया ?
उत्तर-4 महर्षि स्वामी दयानन्द जी  से हिंदी में बोलने का अनुरोध बंगाल की राजधानी कलकत्ता में ब्रह्म समाज के नेता केशब चन्द्र सेन ने किया था | स्वामीजी गुजराती होते हुए भी उस समय तक संस्कृत में ही बोला करते थे | बाद में  आग्रह को स्वीकार करते हुए स्वामी जी ने राष्ट्रभाषा हिन्दी में बोलना शुरू कर दिया था |
प्रश्न संख्या -5 महात्मा गांधी ने बी.बी.सी.के अधिकारीयों को भारत के आजाद होने पर सन्देश देने से मना क्यों कर दिया ?
उत्तर-5 देश के आज़ाद होने पर बी.बी.सी.लन्दन के अधिकारी महात्मा  गांधी जी से ऐसा सन्देश लेने के लिए पहुंचे जिसे वे रेडियो पर सुना सकें | उन दिनों बी.बी.सी. से हिन्दी में प्रसारण नहीं होते थे | परिणाम यह हुआ कि- महात्मा गांधी जी नें कोई सन्देश नहीं दिया | और आधिकारियों को यह कहकर वापस लौटा दिया कि- “ दुनिया को भूल जाना चाहिये कि- गान्धी भी अंग्रेजी जानता है “ |  गांधीजी कहा करते थे यदि मेरे हाथ में देश की बागडोर होती तो आज ही विदेशी भाषा का दिया जाना बन्द करवा देता और सारे अध्यापकों को स्वदेशी भाषाओं को अपनाने के लिए मजबूर कर देता |

D.S ch-5 class 8

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पाठ संख्या -5  ( गायत्री जप का प्रभाव )
प्रश्न-1    गायत्री मन्त्र लिखें ?
उत्तर-1   ओ३म् - भूर्भुवः स्वः |  तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि |
           धियो यो न: प्रचोदयात् ||  वेद भगवान्  ||
 प्रश्न-2 गायत्री मन्त्र का अर्थ लिखें ?
उत्तर-2   ओ३म् -यह परमेश्वर  का उसका अपना मुख्य निज नाम है |  
भू: = प्राणों का भी प्राण |
धीमहि=धारण करें
भुवः= दु:खों से छुड़ाने हारा
धियो=बुद्धियों को
स्व:= स्वयं सु:ख स्वरुप और  अपने उपासकों को भी सु:ख की प्राप्ति करने हारा
यो=जो
तत् =उस  ( ईश्वर को )
न := हमारी ओर
सवितुर = सकल जगत के उत्पादक,समग्र एश्वर्यो के दाता स्वामी परमात्मा
प्रचोदयात् = सन्मार्ग की ओर प्रेरणा करें .
वरेण्यं=अपनाने योग्य तेज को

भर्गो =सब क्लेशों के भस्म करने हारा ईश्वर

देवस्य=कामना करने योग्य

            


प्रश्न-3  गायत्री मन्त्र की महिमा लिखिए ?
उत्तर-3 ओ३म् - भूर्भुवः स्वः |  तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि | 
                      धियो यो न: प्रचोदयात् ||  वेद भगवान्  ||       
इस गायत्री मन्त्र को सावित्री मन्त्र, गुरूमन्त्र वेदमाता मन्त्र ,महा मन्त्र आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है | गायत्री मन्त्र की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया  है कि- “ समस्त दु:खों के  अपार सागर से पार लगानें वाली गायत्री है “| इसीलिए इसे पाप निवारनी दु:ख हारिणी और त्रिलोक तारिणी आदि भी कहते है |
प्रश्न-4 सविता शक्ति द्वारा मानवीय पुरूषार्थ के विषय में लिखें ?
उत्तर-4  जिस प्रकार परमात्मा  अपनी सविता शक्ति द्वारा सुप्त प्रकृति को रच देता है ठीक इसी  प्रकार परमात्मा को सविता नाम से पुकारने वाले साधक का भी कर्तव्य हो जाता है कि-वह भी अपने आप को अज्ञान की निंद्रा से दूर करे और सब मनुष्यों को ईश्वर भक्त ,वेद भक्त तथा जनता जनार्दन बनाने का यत्न करे |    ( pg.17 पर  2 nd  last para full  )
प्रश्न-5 गायत्री मन्त्र के जप की विधि,समय एवं जाप के  स्थान के बारे में लिखें ? उत्तर-5
गायत्री जाप की विधि          
गायत्री जाप का समय
गायत्री जाप का स्थान
प्रातः एवं सायं  शुद्ध पवित्र होकर सु:खासन या अन्य किसी आसन पर बैठकर प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए |
गायत्री मन्त्र का जाप प्रातःकाल एवं सायंकाल करना चाहिए
गायत्री मन्त्र का जाप करने का स्थान साफ़,शुद्ध एवं पवित्र होना चाहिए |बाग़ बगीचा या नदी का किनारा आदि आदि |
गायत्री का जप  प्रातः एवं सायं काल करता  है वह प्रभु का साक्षात्कार  कर सकता है अतः हमें प्रभु की उपासना करनी चाहिए | प्रभु से विद्या,बुद्धि ,यश ,बल ,कीर्ति की याचना करनी चाहिए |  
प्रश्न-6 महात्मा गांधी के गायत्री के विषय में विचार लिखिए ?
उत्तर-6  महात्मा गांधी जी ने एक लेख में लिखा है कि-“ गायत्री मन्त्र का स्थिरचित्त एवं शांत हृदय से किया गया जाप आपातकाल के संकटों से दूर रखनें का सामर्थ्य रखता है और आत्मोन्नति के लिए उपयोगी है |”  अतः हम सबको भी  गायत्री जाप करना चाहिए |
प्रश्न-7 स्वामी विरजा नन्द और महात्मा आनंद स्वामी को प्राप्त हुए गायत्री
       जाप के फल का उल्लेख कीजिए ?
उत्तर-7 महर्षि दयानन्द के गुरु स्वामी विरजानन्द जी को गायत्री के जाप से सिद्धि प्राप्त हुई थी और इतना ही नहीं  गायत्री जाप से ही मनुष्य ब्रह्म तक का साक्षात्कार भी कर सकता है  अतः हमें गायत्री की उपासना करनी चाहिए | +  
महात्मा आनंद स्वामी ने ---------आगे ही बढ़ते गये | +    
अतः  श्रध्दा और विश्वासपूर्वक ,एकाग्र मन से अर्थ चिंतन सहित  गायत्री मन्त्र का जाप किया करें |    ( pg.17 पर last para 3rd  line)

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